रेलवे कर्मचारियों के लिए सरकारी आवास अब किराए के मकान से भी महंगा पड़ रहा है। यही वजह है कि सातवें वेतन आयोग में एचआरए बढ़ने के बाद कई कर्मचारियों ने आवास खाली करने के लिए आवेदन दिया है। सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद रेलवे कर्मचारियों का सरकारी आवास में रहना घाटे का सौदा साबित हो रहा है।
अभी सरकारी आवास लेने पर कुल वेतन का 10 प्रतिशत एचआरए देना पड़ता है। जैसे की किसी कर्मचारी का मूल वेतन 60 हजार है तो उसे छह हजार रुपये एचआरए देना पड़ता है। बिजली का बिल अतिरिक्त। मगर, सातवें वेतन आयोग ने स्टेशन की श्रेणी के हिसाब से आठ, सोलह और चौबीस प्रतिशत एचआरए देने का एलान किया है। इस हिसाब से अब कर्मचारियों को सरकारी आवास लेने पर दस हजार रुपये से ऊपर ही देना होगा। इससे कम में उन्हें निजी आवास किराए पर मिल रहा है। फिलहाल मंडल में 50 से अधिक कर्मचारियों ने आवास खाली करने के आवेदन दे रखे हैं।
ये भी समस्या : रेलवे कालॉनी में बने रेलवे क्वार्टर ज्यादातर खाली रहते हैं और उनपर बाहरी तत्वों का कब्जा रहता है । क्वार्टर में रहने वाले कर्मचारी भी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन आवासों में न तो समुचित सफाई की जा रही है और न ही स्वच्छ जलापूर्ति हो पाती है। वहीं, दक्षिण पूर्व रेलवे मेंस कांग्रेस के को-आर्डिनेटर शशि मिश्रा ने बताया कि सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद से रेलवे टाटानगर के कर्मचारियों को 16 प्रतिशत एचआरए मिलता है, आवास लेने पर एलाउंस रुक जाता है और आवास का किराया के साथ बिजली बिल का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता है। इस सिलसिले में नियम पर दोबारा विचार करने का प्रस्ताव दिया गया है।
रेलवे कॉलोनियों में स्थित आवासों में नलों से गंदा पानी आ रहा है। नालियों में पानी जमा होने से मच्छरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। इस कारण लोग पीने के पानी के साथ ही बीमारियों का खतरा होने से परेशान हैं। रेलवे कॉलोनी की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यहां लोगों को परेशान होना पड़ रहा है। यहां अक्सर नालियों में पानी का जमाव रहता है। नलों में कई दिनों से गंदा पानी आ रहा है, जिसके बारे को कोई सुनने को तैयार नहीं है।
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